बुधवार, 6 फ़रवरी 2019

अब उजालों का काफिला अपना

है मुसाफत पे आसरा अपना
मंजिलों से है वायदा अपना

तीरगी  की मियाद इतनी थी
अब उजालों का काफिला अपना

आज भी भूख की हुकूमत पर
खून रह-रह के खौलता अपना

मुश्किलों को जबाव देता है
सब्र, संघर्ष, हौंसला अपना

लाख हो दिल उदास पर देखो
आज चिहरा खिला-खिला अपना

दर्द सबका शुमार है इसमें
इसलिए है ये दिल भरा अपना

अश्क़ दे कर भी फूल खिल न सके
सिर्फ इतना है वाकया अपना

कौन आता है रोज दुनिया में
नाम, कुछ कर, कि हो जुदा अपना

झूठ है ग़म की बानगी सारी
ख़ूब हँसता है आइना अपना

आप ने तोड़ कर बुरा न किया
दिल तो टूटा है बारहा अपना

जिंदगी क्या इसी को कहते हैं
दिल भी अपना न दिलरुबा अपना

बारिशों पर मलाल इतना है
मिट गया अब के झौंपड़ा अपना

©2019 डॉ रविन्द्र सिंह मान

 सर्वाधिकार सुरक्षित

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