सोमवार, 27 अगस्त 2018

रुत बदली तो मैंने समझा बदलेंगे हालात मेरे

रुत बदली तो मैंने समझा बदलेंगे हालात मेरे
शायद वो आ जाएंगे, बन जाएंगे औकात मेरे

एक जरा सी बात पे रूठ के राहों से जाने वाले
तू क्या जाने तुझ-बिन कैसे गुजरे हैं दिन-रात मेरे

जीने की भरपूर तलब थी, जीना भी था उसके साथ
मुमकिन है वो जानता था, आँखों में लिखी हर बात मेरे

दोनों ने इकरार किया था, प्यार किया था दोनों ने
उसके हिस्से में गुल आये, आँसू की बरसात मेरे

एक जरा से दिल ने कैसे- कैसे ये तूफान सहे
चाहत, ख्वाहिश, तलब, बेचैनी और रिश्तों की घात मेरे

नाउम्मीदी में ये खुशफहमी भी हरदम साथ रही
मैं जब चाहूँगा रख देंगे वो हाथों में हात मेरे

नदी किनारे से पूछुंगा, क्या आये थे वापिस वो
जिनके पास रखे हैं सारी खुशियों के सौगात मेरे

नाकामी से कुछ सीखा, न किस्मत ने ही साथ दिया
खूब थपेड़े राह में खाये दिल ने यूँ अर्थात मेरे

©2018 डॉ रविन्द्र सिंह मान
 सर्वाधिकार सुरक्षित

बुधवार, 22 अगस्त 2018

इक दुनिया है जो सरल नहीं




इक ही उपवन के वृक्ष सभी, पर पात- पात में अवकल है
इक दुनिया है जो सरल नहीं, इक जीवन है जो मुश्किल है

मौसम की धूप ने चिहरों पर अवसादों का रंग पोता है
यां ऐसा ही थोड़ा- थोड़ा, कुछ सबके साथ में होता है
लेकिन आशाओं के रथ जब, हुँकार उठाते रह- रह कर
उजास पहाड़ों से बहकर पानी सा बहता कल- कल है

इक दुनिया है जो सरल नहीं, इक जीवन है जो मुश्किल है


अंतर्मन के दर्पण पर कुछ, बनता है, और ढह जाता है
लेकिन कैनवास मिटा कर भी कुछ मिटा हुआ रह जाता है
ये गेसू हैं, ये आँखें हैं, ये होटों की गोलाई है
ये आँसू है, अट्टाहस है, या मेरे मन की अटकल है

इक दुनिया है जो सरल नहीं, इक जीवन है जो मुश्किल है

हर राह चुनौती देती है, हर राह उमंगें भरती है
लेकिन आशा न जाने क्यूँ, हर बार मोड़ पर डरती है
जो चलता है, जो गिर- गिर कर उठने की कोशिश करता है
जो काल के भाल पे चढ़ता है, हर राह में उसकी मंजिल है

इक दुनिया है जो सरल नहीं, इक जीवन है जो मुश्किल है


रुकने वाले, हँफ़ने वाले, कितना सा रस्ता है बाकी
दिन ढलता है ढल जाने दे, हर रात के बाद सुबह आती
अँधेरों के अपनेपन को साँसों में कुछ घुल जाने दे
जलना- बुझना है क्षणिक मगर , अँधेरा शाश्वत- निश्चल है

इक दुनिया है जो सरल नहीं, इक जीवन है जो मुश्किल है



©2018 डॉ रविन्द्र सिंह मान

 सर्वाधिकार सुरक्षित