बुधवार, 21 अगस्त 2019

दुःख तो ये है

दुःख तो ये है वो शामिल हैं मेरा शहर जलाने में
मैंने अपने हाथ जलाए जिनकी आग बुझाने में

यादों को धुँधला करने में, नजरें भी धुंधलाऐंगी,
वक़्त लगेगा दीवारों पर लिक्खे नाम मिटाने में

कुछ कहने से पहले रुककर लाख अगर सोचा फिर भी,
और भी दिल के भेद खुले हैं, दिल का राज छुपाने में

जीवन के शतरंज़ पे आख़िर वक्त ने ऐसी चाल चली
ग़ैर तो  ग़ैर रहे, अपने भी  ग़ैर हुए अनजाने में

कुछ तो उन नीली आँखों में दरियाओं का वादा था
और कुछ लज्ज़त, जिस्मों को भी, डूब के थी मर जाने में

दिल चाहे मंदिर के अंदर खुल जाये इक़ मस्ज़िद भी
और इस मस्ज़िद का इक़ पहलू खुल जाए मयख़ाने में

रोज मरीजों से कहता हूँ ऐसे समझाओ दिल को
लेक़िन ख़ुद को उम्र लगी है, इस दिल को समझाने में

©2019 डॉ रविन्द्र सिंह मान

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