कभी किनारे निहारते हैं
कभी समन्दर पुकारते हैं
हमीं, दिलों को उधार देकर
उदास रातें गुजारते हैं
कुछेक उनके यकीन सच्चे
कुछेक उनको मुग़ालते हैं
अभी बहारों में देर है कुछ
अभी से क्या, आप चाहते हैं?
उदास दिल हैं, उदास बातें
उदासियाँ ही इबादते हैं
बहार, पतझड़ से डर गई, याँ
ये जिन्दगी की शरारते हैं
कशम कशी के तमाम मौके
न जीत पाते, न हारते हैं
तमाम चेहरों पे दाग़ दिल के
मुहब्बतों में हिकारते हैं
तुमे मुबारक जहाँ की दौलत
हमें मुहब्बत की चाहते हैं
©2016 डॉ रविन्द्र सिंह मान
सर्वाधिकार सुरक्षित
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