शनिवार, 2 फ़रवरी 2019

अभी कुछ और शामें हैं खुशी की

ग़जल

मुहब्बत में भी उसने दिल्लगी की
जहर देकर दुआ दी जिंदगी की

सन्नाटों में जो अक्सर गूँजती है
सदा है ये हमारी ख़ामुशी की

गुजारें वक़्त कैसे साथ अपने
कि आदत हो गई हमको किसी की

नहीं भूले तुम्हारा नाम, यानी
अभी कुछ और शामें हैं खुशी की

किसी का नाम लूँ, तू याद आये
हदें तो कर मुकर्रर बंदगी की

दगा देकर, ज़माने में सभी को
दुहाई दे रहा है दोस्ती की

©2019 डॉ रविन्द्र सिंह मान

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