शनिवार, 7 जून 2025

दिल के ऐसे हालात हैं कुछ

 

दिल के ऐसे हालात हैं कुछ खुशबाश सजाएं मांगता है
यूं जां देने को राजी है कातिल से वफाएं मांगता है

है इश्क वो शय जिसने भी इसे लज्जत समझा शिद्दत से किया
जीने की तमन्नाऐं  करता मरने की दुआएँ मांगता है

कुछ लम्हों की बेबाकी ने सदियों की खामोशी बख़्शी
पर इस बस्ती में जीना तो पुरजोर सदाएं मांगता है

कभी फूलों की खुश्बू की तरह, कभी मौसम के रंगों की तरह
हम सादा दिलों से भी कोई हर रोज़ अदाएं मांगता है

हैरान हूं के दो हमराही, आशिक भी हैं, संजीदा भी
और हर कोई इक दूजे के बदले में सजाएं मांगता है

©2025 डॉ रविंद्र सिंह मान

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