दिल के ऐसे हालात हैं कुछ खुशबाश सजाएं मांगता है
यूं जां देने को राजी है कातिल से वफाएं मांगता है
है इश्क वो शय जिसने भी इसे लज्जत समझा शिद्दत से किया
जीने की तमन्नाऐं करता मरने की दुआएँ मांगता है
कुछ लम्हों की बेबाकी ने सदियों की खामोशी बख़्शी
पर इस बस्ती में जीना तो पुरजोर सदाएं मांगता है
कभी फूलों की खुश्बू की तरह, कभी मौसम के रंगों की तरह
हम सादा दिलों से भी कोई हर रोज़ अदाएं मांगता है
हैरान हूं के दो हमराही, आशिक भी हैं, संजीदा भी
और हर कोई इक दूजे के बदले में सजाएं मांगता है
©2025 डॉ रविंद्र सिंह मान
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें