रहे घर के न तेरी ही गली के
वही हैं हाल अब भी आशिकी के
कभी देखा जिसे परखा नहीं था
कहाँ कायल हुआ ऐसी खुदी के
बहारें लौट कर आती रहेंगी
तुम्हारे बिन न होंगे दिन हँसी के
इश्क में नेकनामी से भी बढ़कर
मिली नाकामियाँ, तमगे ख़ुशी के
वफ़ा उनकी न परखो यूँ अभी से
तरीके और भी हैं ख़ुदकुशी के
मिरे गम का नहीं इल्जाम तुझ पर
न मेरे आँसुओं में गम किसी के
बहुत खामोश हो फिर आज, शायद
यकीं तुमको था बातों पे उसी के
कभी भीतर उतर के ही न देखा
तुम्हारी मुस्कराहट, बेबसी के
©2015 डॉ रविन्द्र सिंह मान
सर्वाधिकार सुरक्षित
वही हैं हाल अब भी आशिकी के
कभी देखा जिसे परखा नहीं था
कहाँ कायल हुआ ऐसी खुदी के
बहारें लौट कर आती रहेंगी
तुम्हारे बिन न होंगे दिन हँसी के
इश्क में नेकनामी से भी बढ़कर
मिली नाकामियाँ, तमगे ख़ुशी के
वफ़ा उनकी न परखो यूँ अभी से
तरीके और भी हैं ख़ुदकुशी के
मिरे गम का नहीं इल्जाम तुझ पर
न मेरे आँसुओं में गम किसी के
बहुत खामोश हो फिर आज, शायद
यकीं तुमको था बातों पे उसी के
कभी भीतर उतर के ही न देखा
तुम्हारी मुस्कराहट, बेबसी के
©2015 डॉ रविन्द्र सिंह मान
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