बुधवार, 6 फ़रवरी 2019

कतआ

कतआ

इश्क़ में हम काफिरों का न उठे सर, इसलिए
हर किसी के हाथ में दिखता है पत्थर, इसलिए

जब से उसने आप को दरिया में खाली कर दिया
मुंतजिर मुझ में है तब से इक़ समंदर, इसलिए

उसके आने से खिले हैं चाँद, चिहरे, फूल औ दिल
याद जब करता हूँ, करता हूँ मैं खुलकर इसलिए


©2019 डॉ रविन्द्र सिंह मान


 सर्वाधिकार सुरक्षित

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें