गुरुवार, 16 नवंबर 2017

फिर तलाशी हो रही है आज बेईमान की


फ़ितरतों में मुस्कुराहट, वुसअतें ईमान की
दिल मुहब्बत से लबालब, जात है इंसान की

दोस्ती के फ़लसफ़े कहते रहे जो उम्र भर
दुश्मनी किरदार में उनके मिली हैवान की

खुद हकीकत ढूंढ़ते-फिरते रहे हैं इस कदर
दूरियाँ नापी हैं हमने दूर तक वीरान की

होश वालों ने पुकारा यार की महफ़िल में कल
मैं खुमारी में मगर डूबा था उस शैतान की

ये गिरह खुलती नहीं है जिंदगी का भेद क्या
बस यहीं से कल्पनायें बन गईं भगवान की

बाद मरने के नहीं जन्नत न कोई दोजखें
बस यही धरती हमारे वास्ते अभिमान की

दोस्तो बचकर! सियासत की बिसातों पे यहाँ
गोटियाँ फेंकी गई हैं बारहा भगवान की

खुद से हो जायें ख़ुदा, अभिमान को करके विदा
बात इतनी सी है गीता या कहें कुरआन की

शुक्रिया दिल से करूँ, या दिल ही कदमों में धरूँ
जान देकर ही उतारूँगा बलाएं जान की

साहिलों तक खींच तो लाये दिलों की डोंगियाँ
डर गया अब देखकर तैयारियां तूफान की

झुरमटों में मिलके उनसे जिंदगी रोशन हुई
जल रही अब तक चिरागे-दिल में लौ अहसान की

नीयतें खंगालते हैं वो हमारी रात-दिन
फिर तलाशी हो रही है आज बेई'मान' की



©2015 डॉ रविन्द्र सिंह मान
 सर्वाधिकार सुरक्षित



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