रविवार, 12 नवंबर 2017

ये हुई बात कुछ बगावत की


बात जब भी कही सदाकत की
उठ गईं उँगलियाँ अदावत की

आँधियाँ जब चलीं शिकायत की
अर्जियां उड़ गईं हिमायत की

माँगने हक चले हैं हम उनसे
बात करते हैं जो कयामत की

जिन्दगी भर सहे सितम हमने
आप कहते रहे इनायत की

मुद्दतों बाद पूछते हैं वो
हालतें हमसे फिर सलामत की

हम चले तो हवायें भी हमसे 
कर रहीं चुगलियाँ  मुहब्बत की

मंदिरों-मस्जिदों के साये ही
कत्लगाहें बनीं इबादत की

आज भी भूख की हुकूमत पर
हुक्मरानों ने कब नदामत की

कोई फ़रियाद फिर करे कब तक
नींद गहरी हो जब हुकूमत की

कोंपलें फूट आईं फिर देखो
ये हुई बात कुछ बगावत की



©2015 डॉ रविन्द्र सिंह मान
 सर्वाधिकार सुरक्षित

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