सोमवार, 30 अक्तूबर 2017

भूल के सब कुछ उन्हीं के फिर दीवाने हो गये

उल्फ़तों के दौर भी गुजरे जमाने हो गये
आप क्या रूठे, सभी हम से बगाने हो गये

दिल गुजरते वक्त में खिलते गये हैं और भी
चेहरे घिस घिस के मगर बेहद पुराने हो गये

मुद्दतों के बाद आये वो हमारे दर औ हम 
भूल के सब रंजिशें फिर से दिवाने हो गये

मातमों की भीड़ , आखिर हौंसला दिल का बनी
शुक्र तन्हा दिल में कुछ तो आशियाने हो गये

नफ़रतों से पुर मगर , ज़ाहिर तकल्लुफ इश्क का
मेरे मर जाने को याँ, कितने बहाने हो गये

आपकी आँखों की जानिब झूमते आते हैं सब
गो यही दिल में उतरने के ठिकाने हो गये

भूख से बिकने-बिकाने को कोई तैयार जब
सोचिये इंसान भी दो-चार आने हो गये

चल दिये मक्तल को हाथों में लिये अपना कफ़न
बस्तियाँ इस शहर की तो, भूतखाने हो गये


©2015 डॉ रविन्द्र सिंह मान
 सर्वाधिकार सुरक्षित

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