गुरुवार, 11 अप्रैल 2024

उन निगाहों को खाब कर बैठे


उन निगाहों को खाब कर बैठे

इश्क में इंकलाब कर बैठे


जाने क्या गैर से कहा उसने

हम मगर दिल खराब कर बैठे


इक ज़रा सी नहीं पे रो रो के

एक सहरा चिनाब कर बैठे


उलझनें और भी बढ़ीं मिलकर

और मिलने की ताब कर बैठे


इश्क में बेहिसाब खोकर सब 

इश्क फिर बेहिसाब कर बैठे


याद के नातमाम मंज़र में

एक लम्हे को बाब कर बैठे


©2024 डॉ रविंद्र सिंह मान


रविंद्र सिंह मान

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