उन निगाहों को खाब कर बैठे
इश्क में इंकलाब कर बैठे
जाने क्या गैर से कहा उसने
हम मगर दिल खराब कर बैठे
इक ज़रा सी नहीं पे रो रो के
एक सहरा चिनाब कर बैठे
उलझनें और भी बढ़ीं मिलकर
और मिलने की ताब कर बैठे
इश्क में बेहिसाब खोकर सब
इश्क फिर बेहिसाब कर बैठे
याद के नातमाम मंज़र में
एक लम्हे को बाब कर बैठे
©2024 डॉ रविंद्र सिंह मान
रविंद्र सिंह मान
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