उसके जैसी सब से मुहब्बत कैसे हो
उस से सहमत सब से सहमत कैसे हो
ख़ाब में उसको देखने वाले ने सोचा
ख़ाबों सा ये ख़ाब हकीकत कैसे हो
पलटा, आंख उठाई, थोड़ा मुस्काया
हश्र से पहले और क़यामत कैसे हो
उसकी आँखें पढ़ते पढ़ते सीख गया
एक ख़ुदा पर पूरी अक़ीदत कैसे हो
फूल खिला के कांटों में सोचा हर बार
जाने इन कांटों से निस्बत कैसे हो
हिज्र की शब हम तेरे पहलू आ बैठे
इस उलझन में हम से हिजरत कैसे हो
बड़े जतन से हक़मारी की फिर सोचा
अब इस काम में और भी बरकत कैसे हो
रूहों तक तो ख़ुद को उधेड़ लिया हमने
कुछ तो बताओ तुम से मुहब्बत कैसे हो
दुनिया चांदी चांदी, सोना सोना है
हाथ पे रक्खे दिल की हिफ़ाज़त कैसे हो
शोर मचाते उठ आए दीवाने लोग
मयखाने में रोज़ इजाज़त कैसे हो
हंसते हंसते अब तो रो पड़ते हैं हम
रो देने वालों से बगावत कैसे हो
लोहा तो लोहे से कट भी सकता है
कम लेकिन नफरत से नफरत कैसे हो
चेहरे-मोहरों तक सीमित इस जंगल में
एहसासों की बोल हुकूमत कैसे हो
©2024 डॉ रविंद्र सिंह मान
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