आ कि मेरी धड़कनों में बस तुम्हारा नाम है
जिंदगी नेमत तिरी है औ तिरी पहचान है
तुम जिसे इस पार से उस पार तक खींचा किये
दिल मेरा पत्थर नहीं है इक जरा सी जान है
सख्त दिखना, सख्त रहना है तकाजा वक्त का
छू लिया, पाओगे भीतर मोम सा इंसान है
सेहरी औ रोजे' की अफ्तार तक मुश्किल नहीं
मुफलिसों के वास्ते ताजिंदगी रमजान है
आज फिर मैं भीड़ में ढूंढा किया खुद को यहाँ
हाशिया मेरी हकीकत, तन्हाई पहचान है
झूठ उतरा आईने में औ हकीकत ये खुली
शायरी है दिल मेरा, सिर कुफ़्र का सामान है
©2015 डॉ रविन्द्र सिंह मान
सर्वाधिकार सुरक्षित
जिंदगी नेमत तिरी है औ तिरी पहचान है
तुम जिसे इस पार से उस पार तक खींचा किये
दिल मेरा पत्थर नहीं है इक जरा सी जान है
सख्त दिखना, सख्त रहना है तकाजा वक्त का
छू लिया, पाओगे भीतर मोम सा इंसान है
सेहरी औ रोजे' की अफ्तार तक मुश्किल नहीं
मुफलिसों के वास्ते ताजिंदगी रमजान है
आज फिर मैं भीड़ में ढूंढा किया खुद को यहाँ
हाशिया मेरी हकीकत, तन्हाई पहचान है
झूठ उतरा आईने में औ हकीकत ये खुली
शायरी है दिल मेरा, सिर कुफ़्र का सामान है
©2015 डॉ रविन्द्र सिंह मान
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