मंगलवार, 18 अगस्त 2015

रह गई आपकी ही कमी दोस्तों

जान दी, दी उसी की हुई दोस्तों
रह गई इश्क की बंदगी दोस्तों

मैं चला, मंजिलों की तरह जिंदगी
दूर से दूर होती गई दोस्तों

काम था, नाम था, था सभी कुछ यहाँ
रह गई आप की ही कमी दोस्तों

हम रहेंगे नहीं, पर रहें इश्क की
आयतें जो हवा में लिखी दोस्तों

छोड़के तेरा' दर हम हुये दर बदर
है कहानी पुरानी वही दोस्तों

यूँ उतारी नजर, की नजर से उतर
हम गये, बस कमी ये रही दोस्तों

रात भर ये हवा गुनगुनाती रही
आपकी याद आती रही दोस्तों

जो तहें जिस्म की ही रहे खोलते
फिर कहाँ प्यास उनकी बुझी दोस्तों

हाथ भर था सफर, हाथ से ही निकल
तुम गये, तो गई जिंदगी दोस्तों


©2015 डॉ रविन्द्र सिंह मान
 सर्वाधिकार सुरक्षित

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