शुक्रवार, 29 मई 2015

जिस राह हम चले थे

जिस राह हम चले थे वो जरकार है अब भी,
तुमको मेरी  चाहत पे  इख्तियार है अब भी.

हम थक चुके हैं चलके मंसूबों  के जोर पर,
मंजिल जो चाहिये थी वो दरकार है अब भी.

तेरे तगाफुल ने जिस राह को मायूस किया,
तेरा, उसके हर मोङ को इंतजार है अब भी.

तेरे जाने से  इस दिल  की बेचैनी ना गई,
इक धङकन सी सीने में बेकरार है अब भी.

झूठी तेरी बातें, तेरा वादा-ए-आमद मगर
हर भरोसे पे दिल ये बरकरार है अब भी.

सूखे पड़े ऐसे जमीं दिल की तड़क गई
आँखों के बरसने का इंतजार है अब भी.

कोई भी बारिश इस तन को भिगाती नहीं
दिल को किसी दूजे से इन्कार है अब भी.

लोकराज में से "राज " चटकार गए तुम
भूखा सारा "लोक" मेरी सरकार है अब भी.

©1995 डॉ रविन्द्र सिंह मान
 सर्वाधिकार सुरक्षित

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