रविवार, 9 नवंबर 2025

रोग बन के रह गया है प्यार तेरे शहर का

 रोग बन के रह गया है प्यार तेरे शहर का

हर  मसीहा दिख रहा बीमार तेरे शहर का


इसकी गलियां मेरी सब चढ़ती जवानी खा गईं

क्यूं नहीं करता रहूं  सत्कार तेरे शहर का 


 शहर  तेरे कद्र लोगों को न सच्चे प्यार की

रात को खुलता है हर बाजार तेरे शहर का


अब तो मंजिल के लिए इक पैर भी उठता नहीं 

चुभ  गया  कुछ  इस  तरह  से  खार  तेरे  शहर  का 


इक  कफ़न  भी   बाद  मरने  के  नहीं होता  नसीब 

कौन पागल फिर करे इतबार तेरे शहर का


यहां मेरी लाश तक नीलाम कर डाली गई

पर  नहीं  उतरा है कर्जा यार तेरे शहर का


पंजाबी में ग़ज़ल  शिव कुमार बटालवी 

 हिंदी अनुवाद मेरा है.

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