शनिवार, 11 अक्टूबर 2025

इक दिन हम तुम फेर मिलेंगे



उस कैफे में पीछे बैठ के 

हम दोनों ने एक ही कप में

आधी आधी चाय पी थी

इक दूजे को पास बिठा के

न ही तो पलकें झपकी थीं

न ही कोई बात कही थी


उस कैफे की छत पर जब भी

पूरे चांद की रात खिलेगी

रात के पिछले पहर में छिपकर

इक दिन हम तुम फेर मिलेंगे


सपनों के उस महल के बाहर

अमियों के एक बाग के अंदर

सबसे ऊंचे पेड़ पे तेरा

मेरा नाम जो कभी लिखा था

इक दूजे को भूल न जाएं

तभी लिखा था


अमियों के उस बाग के अंदर

बूढ़े हो गए पेड़ के नीचे

सपनों की पतझड़ से पहले

इक दिन हम तुम फेर मिलेंगे


कालेज की उस लैब में अक्सर

साहिर की गजलों को पढ़ते

लफ्ज़ों के अर्थों पर लड़ते

इक दूजे की आंखे तकते 

गलत सलत कविताएं कहते

विरह के कुछ गीत लिखे थे

लिखते लिखते रो पड़ते थे


फिर से लैब की तीसरी सफ में 

अबके उन गीतों को लिखते   

आंखों में बरसात से पहले

इक दिन हम तुम फेर मिलेंगे


©2025 डॉ रविंद्र सिंह मान


शनिवार, 7 जून 2025

दिल के ऐसे हालात हैं कुछ

 

दिल के ऐसे हालात हैं कुछ खुशबाश सजाएं मांगता है
यूं जां देने को राजी है कातिल से वफाएं मांगता है

है इश्क वो शय जिसने भी इसे लज्जत समझा शिद्दत से किया
जीने की तमन्नाऐं  करता मरने की दुआएँ मांगता है

कुछ लम्हों की बेबाकी ने सदियों की खामोशी बख़्शी
पर इस बस्ती में जीना तो पुरजोर सदाएं मांगता है

कभी फूलों की खुश्बू की तरह, कभी मौसम के रंगों की तरह
हम सादा दिलों से भी कोई हर रोज़ अदाएं मांगता है

हैरान हूं के दो हमराही, आशिक भी हैं, संजीदा भी
और हर कोई इक दूजे के बदले में सजाएं मांगता है

©2025 डॉ रविंद्र सिंह मान