शनिवार, 27 जनवरी 2024

उस से सहमत सब से सहमत कैसे हो

उसके जैसी सब से मुहब्बत कैसे हो

उस से सहमत सब से सहमत कैसे हो


ख़ाब में उसको देखने वाले ने सोचा

ख़ाबों सा ये ख़ाब हकीकत कैसे हो


पलटा, आंख उठाई, थोड़ा मुस्काया

हश्र से पहले और क़यामत कैसे हो


उसकी आँखें पढ़ते पढ़ते सीख गया

एक ख़ुदा पर पूरी अक़ीदत कैसे हो


फूल खिला के कांटों में सोचा हर बार

जाने इन कांटों से  निस्बत कैसे हो


हिज्र की शब हम तेरे पहलू आ बैठे

इस उलझन में हम से हिजरत कैसे हो


बड़े जतन से हक़मारी की फिर सोचा

अब इस काम में और भी बरकत कैसे हो


रूहों तक तो ख़ुद को उधेड़ लिया हमने

कुछ तो बताओ तुम से मुहब्बत कैसे हो


दुनिया चांदी चांदी, सोना सोना है

हाथ पे रक्खे दिल की हिफ़ाज़त कैसे हो


शोर मचाते उठ आए  दीवाने लोग

मयखाने में रोज़ इजाज़त कैसे हो


हंसते हंसते अब तो रो पड़ते हैं हम

रो देने वालों से बगावत कैसे हो


लोहा तो लोहे से कट भी सकता है

कम लेकिन नफरत से नफरत कैसे हो


चेहरे-मोहरों तक सीमित इस जंगल में 

एहसासों की बोल हुकूमत कैसे हो


©2024 डॉ रविंद्र सिंह मान

शुक्रवार, 19 जनवरी 2024

उसने साथ निभा देने का वादा नहीं किया


उसने  साथ निभा देने का वादा नहीं किया

हमने भी उल्फत का कोई इरादा  नहीं किया


पलकों पर रक्खा था सारे आंसू खारिज़ थे

दिल की धड़कन था पैकर का लिबादा नहीं किया


जिस जिस से मिलवाया खासम-खास कहा उसको

शायद ये गलती  थी उसको सादा नहीं किया


जो तरकीबें थीं कहने , सुनने, और चुप रहने की

सबको दूना बरता एक से आधा नहीं किया


ऐसा नहीं अब जां देने की नौबत आन पड़े

प्यार किया हमने पर इतना  ज्यादा नहीं किया


आज की धुंध  में बात वफ़ा की क्यों कीजे, और किससे 

सूरज ने भी शाम से कल कोई वादा नहीं किया


©2024 डॉ रविंद्र सिंह मान