सफ़र के बाद
सोमवार, 6 जुलाई 2020
तन्हाई
कितनी तन्हा
होती है रात
इसके
अपने ही
अँधेरों-उजालों में
इसका
अपना भी
साया साथ नहीं देता।
और
इतना ही
तन्हा मैं हूँ।
©2020 डॉ रविन्द्र सिंह मान
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें