बुधवार, 26 फ़रवरी 2020

शहर की आग को तुमने आज गुलाब लिखा है



नदी में बहते खून को अक्सर आब लिखा है
शहर की आग को तुमने आज गुलाब लिखा है

आग लगाकर गलियों-गलियों, सत्ताओं ने
सच हों जिसकी ताबीरें वो ख़ाब लिखा है

देश, धर्म की बहस में रहने वालो, तुमको
शायर ने एक सड़ती हुई शराब लिखा है

माना तुम में आग लगाने की हिकमत है
हमने जलते घर पर एक क़िताब लिखा है

मीनारों  पर  केसरिया  लहराने  वालो
तुमको वक़्त ने क़ातिल का अहबाब लिखा है


©2020 डॉ रविन्द्र सिंह मान

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें