सोमवार, 1 जून 2015

ऐ दोस्त! जिंदगी को सजाऊँ कैसे

ऐ दोस्त!  जिंदगी  को  सजाऊँ  कैसे
सख्त हालात हैं, हर बात बताऊँ कैसे?

जा चुके थे तुम अरमान लिये दूर बहुत
मैं सोचता ही रहा तुमको बुलाऊँ कैसे?

चलूँगा चार कदम और बिखर जाऊँगा
मेरा  वजूद  चूर-चूर  उठाऊँ  कैसे?

काँपती है मेरी आवाज गिरते पत्तों सी
ऐसी मुश्किल में तुम्हें साज सुनाऊं कैसे?

हर एक फूल पे पहरा है नजर खुश्बू पे
अब एहतियात से ये चमन जलाऊँ कैसे?

उसने की जब भी किसी से बेवफाई की
अब वो सोचे है जिंदगी से निभाऊँ कैसे?

पिया है  हमने  जहर वक्त के होंठो से
हाँ मैं जिंदा हूँ मगर होश में आऊँ कैसे?

तू जो देखे तो आफताब भी झुकाले नजर
पर मैं  नजरें तेरे  चेहरे से  हटाऊँ  कैसे?

दिया है उसने साथ पिछले मोङ तलक
ये  रहगुजर है  नई  पाँव बढाऊँ कैसे?

वो जतायेंगे अहसान करके कत्ल मेरा
ये दोस्ती है तो ये कर्ज चुकाऊँ कैसे?

1 टिप्पणी:

  1. चलूँगा चार कदम और बिखर जाऊँगा
    मेरा वजूद चूर-चूर उठाऊँ कैसे?

    beautiful........always remember these lines of your Ghazal since college days..

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