रविवार, 15 सितंबर 2024

इस हाल में हम दीवानों से तुम कहते हो खामोश रहो



जब झूठ के ताबेदारों की ज़हराब  आवाज़ों के डर से

सच बोलने वाले चुप्प हुए सब इन मक्कारों के डर से

जब धर्म किसी कातिल के हाथों में खंजर की धार बनें

हर ओर सियासत के नारे, हत्याओं के हथियार बनें


इस हाल में हम दीवानों से तुम कहते हो खामोश रहो


गाय के बहाने लोगों की जब लाश बिछाई जाने लगे

और हत्यारों की गर्दन में माला पहनाई जाने लगे

इंसाफ़ के मंदिर चुप्पी साधे इधर उधर को तकते हों

और बेकसूर इंसाफ़ तो क्या जब ख़ुद जेलों में सड़ते हों


इस हाल में हम दीवानों से तुम कहते हो खामोश रहो



हर गांव की हर इक बस्ती की उम्मीदों में लाचारी हो

और पढ़े लिखे हर हाथ की क़िस्मत में बस बेरोजगारी हो

तिस पे नित बढ़ती महंगाई सबको ठेंगा दिखलाने लगे

मसनद पे बिठाया था जिसको, सबको औकात बताने लगे



इस हाल में हम दीवानों से तुम कहते हो खामोश रहो


©2024 डॉ रविंद्र सिंह मान