मंगलवार, 27 नवंबर 2018

कभी तुझे भी बताऊँ कि कैसी चाहत है



जहाँ तो जान चुका मुझ को तेरी आदत है
कभी तुझे भी बताऊँ कि कैसी चाहत है

मुझी से पूछ रहे हो वफ़ा के अर्थ, कहो
कि इश्क़ तुम जिसे कहते हो वो सियासत है

किसी ने संग गिराये, ज़हर किसी ने दिया
वो फूल तुमने जो फेंके, वही अदावत है

ख़ुदा ने इश्क़ बनाया, जहाँ ने ज़ख्म दिये
दिलों ने कुफ़्र कमाया, यही बग़ावत है

वो चाहता है, नहीं मानता मग़र फिर भी
यही ज़ुल्मत है वज़ाहत है औ कयामत है

रहे न घर के न बाहर के, दैर के, फिर भी
ये किस तरह से बताते हो सब सलामत है

तुझी से तुझ को चुरालूँ, दिलों में जड़वा लूँ
मैं तुम से पूछ रहा हूँ कि क्या इजाज़त है

गुनाह बाद जो तस्लीम भी करे उसकी
है इश्क़ जुर्म वो जिसमें कि ये रिवायत है

मुझे कहा कि मिलो तुम कभी तन्हाई में
ये उसका मुझ पे करम है कि कुछ हिदायत है

चले तो हम भी लेके कारवाँ चिरागों का
हयात-ए- तीरगी तूफ़ान की इनायत है

किसी को चाँद, किसी को उफ़क से इश्क़ रहे
हमें तो अब भी मग़र आपकी जरूरत है

किसी ने फिर से अगर दिल के दर पे दस्तक दी
मिरा जबाव रहेगा, कि फिर स्वागत है

©2018 डॉ रविन्द्र सिंह मान

 सर्वाधिकार सुरक्षित

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