गुरुवार, 17 मई 2018

रात दिन हम दिल को समझाते रहे



दर्द हर मौसम में उकसाते रहे
पतझडों के गीत बन गाते रहे

याद में वो झिलमिलाने सा लगा
ख़ाब में भी ख़ाब से आते रहे

एक लंबा सिलसिला था जिंदगी
हम जरा चलने में  घबराते रहे

यूँ तो मुस्तक़बिल खुला था सामने
हम ही पीछे लौट के जाते रहे

आप से मिल तो लिये, फिर उम्र भर
आपको ही हर जगह पाते रहे

उगते सूरज में तुम्हें देखा अगर
शाम ढ़लती में भी तुम आते रहे

इक दिलासा है कि कल के बाद भी
दिन उगेंगे तुम जो मुस्काते रहे

इश्क ने हमको दिया ये रोजगार
रात-दिन हम दिल को समझाते रहे

क्या बला की भीड़ थी उस राह में
जिसपे वो आते रहे, जाते रहे

सोजे- गम का कायदा रखना पड़ा
आह भरने में भी शर्माते रहे

इश्क है बस, अश्क़ तक का इक सफऱ
दिल के अरमाँ आँख तक आते रहे

©2018 डॉ रविन्द्र सिंह मान


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