दर्द हर मौसम में उकसाते रहे
पतझडों के गीत बन गाते रहे
याद में वो झिलमिलाने सा लगा
ख़ाब में भी ख़ाब से आते रहे
एक लंबा सिलसिला था जिंदगी
हम जरा चलने में घबराते रहे
यूँ तो मुस्तक़बिल खुला था सामने
हम ही पीछे लौट के जाते रहे
आप से मिल तो लिये, फिर उम्र भर
आपको ही हर जगह पाते रहे
उगते सूरज में तुम्हें देखा अगर
शाम ढ़लती में भी तुम आते रहे
इक दिलासा है कि कल के बाद भी
दिन उगेंगे तुम जो मुस्काते रहे
इश्क ने हमको दिया ये रोजगार
रात-दिन हम दिल को समझाते रहे
क्या बला की भीड़ थी उस राह में
जिसपे वो आते रहे, जाते रहे
सोजे- गम का कायदा रखना पड़ा
आह भरने में भी शर्माते रहे
इश्क है बस, अश्क़ तक का इक सफऱ
दिल के अरमाँ आँख तक आते रहे
©2018 डॉ रविन्द्र सिंह मान
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