मंगलवार, 30 जनवरी 2018

कासगंज


कासगंज

आज वतन में हत्यारी  सत्ता फिर से सुशोभित है
कासगंज का जश्न मनाओ, ये उत्सव प्रायोजित है

जिन पेड़ों की शाख कटी है, रोंयेगे वे उम्र तमाम
लेकिन देख रहा हूँ नेताओं के चेहरे पर मुस्कान
भारत माँ की जय बोलेंगे, बस्ती में विष घोलेंगे
टुकड़े- टुकड़े करने की प्रतियोगिता आयोजित है

कासगंज का जश्न मनाओ ये उत्सव प्रायोजित है

सत्ताओं ने सदा ही खेला हत्याओं का खुल्ला खेल
दाँये, बाँये, खादी, भगवा, इनका जनता से क्या मेल
भूख, गरीबी, बेरोजगारी के प्रश्नों से बचने को
हिंदू- मुस्लिम, मंदिर- मस्ज़िद का किस्सा उदघोषित है

कासगंज का जश्न मनाओ, ये उत्सव प्रायोजित है

अफवाहों की तेज हवा ने शोलों को भड़काया है
जो जिंदा हैं उनको भी कल मरा हुआ बतलाया है
झूठ फैला कर, आग लगा कर, खुद ही शोर मचाया है
आज तिरंगा इनके ही कुकर्मों पर खुद क्रोधित है

कासगंज का जश्न मनाओ, ये उत्सव प्रायोजित है



©2018 डॉ रविन्द्र सिंह मान

 सर्वाधिकार सुरक्षित

रविवार, 21 जनवरी 2018

सब आँखों में रहता हूँ मैं



दरियाओं सा बहता हूँ मैं
सब आँखों में रहता हूँ मैं

उजले चिहरे वालों के भी
मुँह पर काला टीका हूँ मैं

कल तक आँखों का तारा था 
अब आँखों का खटका हूँ मैं

सहराओं में जब्त हुआ हूँ
कतरा-कतरा रिसता हूँ मैं

मुझको साया कहनेवालो
हर सूरज का रस्ता हूँ मैं

सूखा हूँ हर गर्मी की रुत
हर बारिश में बरसा हूँ मैं

मुंडेरों पे राह दिखाता
खुद राहों को तरसा हूँ मैं

कुम्हारों के चाक पे घूमा
चाक-दिलों सा तड़पा हूँ मैं

उन के आँखों की खुशियाँ तो
इन के दिल का सदमा हूँ मैं

हाथों से आँखों को ढ़क कर
सहरा-सहरा भटका हूँ मैं

मुझको तन्हाई में सोचो
दिल का इक अफसाना हूँ मैं

बरबस मन में आने वाला
भूला- बिसरा गाना हूँ मैं

अव्वल-अव्वल मैं सब कुछ था
आखिर में बेगाना हूँ मैं

यादों के खँडहर का जैसे
टूटा सा तहखाना हूँ मैं

जाहिल, पागल, जो भी समझो
दीवाना- दीवाना हूँ मैं

खुल कर हँसने की कोशिश में
घुट-घुट बरसों रोया हूँ मैं

दिल को कोई दोष नहीं है
बस नजरों का धोखा हूँ मैं

बाहर जैसा ही दरिया हूँ
भीतर-भीतर बहता हूँ मैं

ग़म को साथी मान लिया है
अब तन्हा नहीं  रहता हूँ मैं



©2018 डॉ रविन्द्र सिंह मान

 सर्वाधिकार सुरक्षित

मंगलवार, 2 जनवरी 2018

पुराना साल, नये साल से


पुराना साल, नये साल से


आने वाले की दस्तक, जाने वाले के दर पे
असमंजस के मौसम में, कोई तो होगा घर पे


बर्फ बिछी है रातों पर, कोहरा छाया है दिन पर
रिश्तों में है ठंड बहुत, नातों में धोखे परस्पर
प्रेम है इक मुरझाया फूल,जिसपे रंग हैं सदमों के
मायूसी की राहों पर, बोझल पाँव हैं कदमों के

ऐसी मुश्किल हालत में नया साल आया फिर से
आने वाले दे दस्तक, जाने वाले के दर पे


मीठे-मीठे गम के गीत, खुशियों के दर बंद सभी
सन्नाटों के सुन संगीत, बहरे हो गये लोग सभी
आते-आते लेता आ, हँसते-मुस्काते चेहरे
कुछ फूलों वाले मौसम, कुछ गाने गाते सेहरे

ऐसा ला कुछ यार नये, चिहरे खिल जायें सबके
आने वाले की दस्तक, जाने वाले के दर पे


आने वाले आ रो लें, नाचें, गायें, गले मिलें
मेरे गम की फिक्र न करें, तेरी उम्मीदें जी लें
मुझसा तू भी अगले साल, क्या यूँ होगा थका-थका?
नये साल से मिलने को  होगा बेहद संजीदा?

आज मगर तेरी उम्मीदों, उत्साहों पे जाँ सदके
जाते-जाते मैं खुश हूँ, आने वाले के कद पे


आने वाले दस्तक दे, जाने वाले के दर पे
बेचैनी के मौसम में, कोई तो होगा घर पे

31 दिसम्बर 2017

©2017 डॉ रविन्द्र सिंह मान
 सर्वाधिकार सुरक्षित