रात भर उस इश्क के आगाज की बातें करो
उस फ़िजां की, उस दिले-परवाज की बातें करो
बुझ रही है साँस की गर्मी, फ़िज़ाओं आज फिर
बेवफाई के उसी अंदाज की बातें करो
जिन्दगी की चमचमाती शोखियां घटने लगें
तो किसी दिल में छुपे पुखराज की बातें करो
भुख मरी, बेरोजगारी, इंतहा फाकाकशी,
मुल्क से कैसे मिटे इस खाज़ की बातें करो
वक़्त कितना भी कड़ा हो, राह मुश्किल हो भले,
लोग पत्थर हों कभी, फ़ैयाज़ की बातें करो
फिर मिलेंगे दोस्तो, मिलते रहे हैं रोज ही
कल नहीं आते कभी, बस आज की बातें करो
©2017 डॉ रविन्द्र सिंह मान
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