शनिवार, 30 सितंबर 2017

कल नहीं आते कभी बस आज की बातें करो



रात भर उस इश्क के आगाज की बातें करो
उस फ़िजां की, उस दिले-परवाज की बातें करो

बुझ रही है साँस की गर्मी, फ़िज़ाओं आज फिर
बेवफाई के उसी अंदाज की बातें करो

जिन्दगी की चमचमाती शोखियां घटने लगें
तो किसी दिल में छुपे पुखराज की बातें करो

भुख मरी, बेरोजगारी, इंतहा फाकाकशी,
मुल्क से कैसे मिटे इस खाज़ की बातें करो

वक़्त कितना भी कड़ा हो, राह मुश्किल हो भले,
लोग पत्थर हों कभी, फ़ैयाज़ की बातें करो

फिर मिलेंगे दोस्तो, मिलते रहे हैं रोज ही
कल नहीं आते कभी, बस आज की बातें करो



©2017 डॉ रविन्द्र सिंह मान
 सर्वाधिकार सुरक्षित

शुक्रवार, 22 सितंबर 2017

यूँ होता तो कैसा होता


प्यार मुहब्बत सीखा होता
नफ़रत का सर नीचा होता

इसका चिहरा उसका होता
यूँ होता तो कैसा होता

काश वफ़ा का मोती तुमने
दीवानों में ढूंढा होता

मेरे मन से उसके मन को
कोई सीधा रस्ता होता

अगर न झूठी खुशियाँ होतीं
सब आँखों में दरिया होता

पीड़, निराशा, गम तो सब हैं
तू भी होता अच्छा होता

याद तुम्हारी गर आ जाती
मैं मेले में तन्हा होता

बस्ती बस्ती आग लगाकर
खूब ढिंढोरा पीटा होता

न हिंदू कोई मुस्लिम होता
 कोई रोज न झगड़ा होता

इतनी बारिश देने वाले
झौपड़ियों का सोचा होता

©2017 डॉ रविन्द्र सिंह मान
 सर्वाधिकार सुरक्षित