रात तेरी सोच में डूबे रहे तारे भी
चाँद भी मद्धम रहा फीके थे नज़ारे भी.
सीने में पहाड़ जैसा वक्त धड़कता रहा
दिल में आरजू जली, जलते रहे शरारे भी.
ना तसव्वुर पे भरोसा, ना हकीकत का यकीं
पतझडों संग खेलती रही हैं यूँ बहारें भी.
किस्मतों की रुखाई तस्दीक कर रहा हूँ मैं
ना ही तुम गैर बने ना हुए हमारे भी.
शुक्र इसके बाद कोई दूसरा सफर ना था
जिंदगी थी नंगे पैर राह थे अंगारे भी.
©2015 डॉ रविन्द्र सिंह मान
सर्वाधिकार सुरक्षित
चाँद भी मद्धम रहा फीके थे नज़ारे भी.
सीने में पहाड़ जैसा वक्त धड़कता रहा
दिल में आरजू जली, जलते रहे शरारे भी.
ना तसव्वुर पे भरोसा, ना हकीकत का यकीं
पतझडों संग खेलती रही हैं यूँ बहारें भी.
किस्मतों की रुखाई तस्दीक कर रहा हूँ मैं
ना ही तुम गैर बने ना हुए हमारे भी.
शुक्र इसके बाद कोई दूसरा सफर ना था
जिंदगी थी नंगे पैर राह थे अंगारे भी.
©2015 डॉ रविन्द्र सिंह मान
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