सफर की रात अगर साथ सितारे होते
तमाम उम्र फिर वो चाँद हमारे होते.
कोई दो पल भी कभी आप हमारे होते
हमने सौ जन्म तेरी याद गुजारे होते.
हिज्र की शाम कहीं तुमने पुकारा होता
तेरे गेसू हमने दिन-रात संवारे होते.
जिंदगी बहता हुआ एक संगीन दरिया है
काश मेरे लिए साहिल से इशारे होते.
भूखे, बेकार, बदनसीब होते जाहिल लोग
गर शँह शाहों के ना ताज उतारे होते.
तेरी तकरीर में महरुमों का भी जिक्र होता
तेरे दो रोज जो फुटपाथों के सहारे होते.
©2015 डॉ रविन्द्र सिंह मान
सर्वाधिकार सुरक्षित
तमाम उम्र फिर वो चाँद हमारे होते.
कोई दो पल भी कभी आप हमारे होते
हमने सौ जन्म तेरी याद गुजारे होते.
हिज्र की शाम कहीं तुमने पुकारा होता
तेरे गेसू हमने दिन-रात संवारे होते.
जिंदगी बहता हुआ एक संगीन दरिया है
काश मेरे लिए साहिल से इशारे होते.
भूखे, बेकार, बदनसीब होते जाहिल लोग
गर शँह शाहों के ना ताज उतारे होते.
तेरी तकरीर में महरुमों का भी जिक्र होता
तेरे दो रोज जो फुटपाथों के सहारे होते.
©2015 डॉ रविन्द्र सिंह मान
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