जहाँ तो जान चुका मुझ को तेरी आदत है
कभी तुझे भी बताऊँ कि कैसी चाहत है
मुझी से पूछ रहे हो वफ़ा के अर्थ, कहो
कि इश्क़ तुम जिसे कहते हो क्या सियासत है
किसी ने संग गिराये, ज़हर किसी ने दिया
वो फूल तुमने जो फेंके, वही अदावत है
ख़ुदा ने इश्क़ बनाया, जहाँ ने ज़ख्म दिये
दिलों ने कुफ़्र कमाया, यही बग़ावत है
वो चाहता है, नहीं मानता मग़र फिर भी
यही ज़ुल्मत है वज़ाहत है औ कयामत है
रहे न घर के न बाहर के, दैर के, फिर भी
ये किस तरह से बताते हो सब सलामत है
तुझी से तुझ को चुरालूँ, दिलों में जड़वा लूँ
मैं तुम से पूछ रहा हूँ कि क्या इजाज़त है
गुनाह बाद जो तस्लीम भी करे उसकी
है एक इश्क़ ही, जिसमें कि ये रिवायत है
©2019 डॉ रविन्द्र सिंह मान
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