आपसे मिलने की दुआ हूँ मैं
आरजू, ख़ाब का सिला हूँ मैं
दूर तक बेबसी है राहों में
चाहे जिस ओर भी चला हूँ मैं
आज सहरा हूँ क़ल समंदर था
जाने किस ज़ुर्म की सज़ा हूँ मैं
उम्र से क्या गिला करें यारो
मौत की राह में खड़ा हूँ मैं
जिसको देखूँ वही नज़र आए
क्या उसे इतना चाहता हूँ मैं
जिंदगी मुझको पी रही है यूँ
जाम कोई भरा हुआ हूँ मैं
©2019 डॉ रविन्द्र सिंह मान
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