कोई गीत मुहब्बत वाला गा सकते तो अच्छा था
जाते- जाते तुम थोड़ा मुस्का सकते तो अच्छा था
जाने कितनी उम्मीदों से तकते हैं दीवाने दिल
तुम भी इन नजरों से नजर मिला सकते तो अच्छा था
चोरी- चोरी रातों मुझसे पूछे उसके बारे में
अपने दिल से कोई बात छुपा सकते तो अच्छा था
जैसे मयख़ाने में भूले जाते हैं शिकवे सारे
हम भी बहके दिल को यूँ बहला सकते तो अच्छा था
वैसे हमको गया निकाला, जैसे जन्नत से आदम
तेरे दर हम लौट अगर फिर आ सकते तो अच्छा था
किसी बात पे बरबस रोते- रोते हँस देते हो ज्यूँ
हम भी दिल को कुछ ऐसा बतला सकते तो अच्छा था
जाने कैसे तुम जख्मों को हिना बताए बैठे हो
हम भी कोई, दिन को रात बता सकते तो अच्छा था
चाँदी जैसे इस मौसम में निकली सोने जैसी धूप
ऐसे में गर तेरी याद बुझा सकते तो अच्छा था
तेरी यादें फिर- फिर हवा के ताजे झौंकों जैसी हैं
गो इनसे हम दिल के जख्म बचा सकते तो अच्छा था
अक्सर ही पूछा करता हूँ खुदसे, अपना साथी कौन
जुज अपने, तुमको अपना बतला सकते तो अच्छा था
©2018 डॉ रविन्द्र सिंह मान
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