सफ़र के बाद
शुक्रवार, 29 मई 2015
तन्हाई
तन्हाई
कितनी तन्हा
होती है रात
इसके अपने ही
अंधेरों- ऊजालों में
इसका अपना भी
साया साथ नहीं देता
और इतना ही
तन्हा मैं हूँ
©1995 डॉ रविन्द्र सिंह मान
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