जब हक़ीकत दुखभरी हो शादमानी किस लिए
सच छुपाना ठीक, पर झूठी कहानी किस लिए
रोज़ ही जीने की खातिर मर रहा हूँ आज़कल
जिंदगी है तू मिरी दुश्मन पुरानी किस लिए
नम निगाहों पर मिरी भी, नाम क्यूँ तेरा नहीं
है तुम्हें इस बात पर इतनी हैरानी किस लिए
आप ही मैं तज़किरा करता हूँ अक्सर आप से
लाख उनसे दुश्मनी पर बदजुबानी किस लिए
जिंदगी दरिया थी, जिसमें इश्क के तूफान थे
वक़्त भी हम पर दिखाता मेह्रबानी किस लिए
साहिलों से सीख देते दोस्तों को क्या कहें
क्या छुपा है दिल के अंदर, बेजुबानी किस लिए
ख़ाक हो जाने हैं आख़िर, जब सितारे अर्श के
जिंदगी होती है फिर इतनी सुहानी किस लिए
अब अगर तुमको पलट कर देखने से है गुरेज़
लौट कर मुझ पे भी फिर आये जवानी किस लिए
याद आयेगी कभी तो, लौट आएगा वो शख्स
बस इसी उम्मीद पर है जिंदगानी किस लिए
यार की तौहीन से बढ़कर नहीं तौहीन कुछ
ये भी है मंजूर तो फिर सरगिरानी किस लिए
©2018 डॉ रविन्द्र सिंह मान
सर्वाधिकार सुरक्षित
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