यूँ तो हर दर्द का बयाँ हम थे
बात कुछ थी कि बेजुबाँ हम थे
जो निगाहें हुजूम-ए-यास रहीं
उन निगाहों का तर्जुमाँ हम थे
जब सफ़र में मुक़ाम नज़्र हुआ
सबकी नजरों में राएगाँ हम थे
हासिले-जिंदगी नहीं कुछ भी
दश्त-दर-दश्त इम्तिहाँ हम थे
दौर ऐसे भी दिल पे गुजरे हैं
हर्फ उनके थे औऱ जुबाँ हम थे
कुछ तो मजबूरियाँ भी थीं लेकिन
बेशतर यूँ ही बदगुमां हम थे
चल रही मेरे बाद भी दुनिया
मैंने समझा कि बादबाँ हम थे
©2018 डॉ रविन्द्र सिंह मान
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