शनिवार, 17 सितंबर 2016

खुशी बाँटा किये, गम को पिया है




खुशी बाँटा किये, गम को पिया है
तुम्हारी उल्फतों को यूँ जिया है

किसी का दर्द हो लेते हैं खुद पर 
मुहब्बत ने यही सिखला दिया है

दिनों से रात काली, लाख अच्छी
न अश्कों से किसी को वास्ता है

अरे! ये कौन सायों की अदा में
बिना बोले हमें पुचकारता है

हमारे वक्त पे कैसी घड़ी है
अदावत दोस्ती का रास्ता है

बराबर धड़कनों  में नाम तेरा
हमें दिन-रात अक्सर टोकता है

हवाओं में है खुशबू बारिशों की
मिरे मन में कसैला सा ये क्या है

खुशी फैली हुई चारों तरफ थी
दुखों को ही मगर हमने चुना है

©2016 डॉ रविन्द्र सिंह मान

 सर्वाधिकार सुरक्षित


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें