गुरुवार, 29 अक्तूबर 2015

अभी हाल दिल का सुनाया कहाँ है


जमीं-आसमाँ को मिलाया कहाँ है
अभी उसने जादू दिखाया कहाँ है


अभी से धड़कता है क्यों मेरा सीना
अभी उसने पर्दा हटाया कहाँ है


निगाहें नमी के भरोसे थीं लेकिन
कभी इतना तुमने रुलाया कहाँ है


नहीं याद उनको भी क़ुर्बत के लम्हे
हमें फ़ुर्क़तों ने डराया कहाँ है


रही जिन्दगी तो मिलेंगे दुबारा
अभी हाल दिल का सुनाया कहाँ है

कभी फुर्सतों में लड़ेंगे खुदी से
अभी हमने खुद को ही पाया कहाँ है


जिया वायदे पे हूँ उनके अभी, पर
कभी वायदे पे वो आया कहाँ है

बुनें ख़ाब कोई, चलो कल की खातिर
अभी हौंसला डगमगाया कहाँ है

यकीं है हमें आपकी तिश्नगी पे
कभी आपको आजमाया कहाँ है

चलें रक्स करते हुए हम भी, उसने
हमें बज़्म में पर बुलाया कहाँ है

उसे महफिलों में करें हम जो रुस्वा
नहीं, उसने इतना सताया कहाँ है


©2015 डॉ रविन्द्र सिंह मान

 सर्वाधिकार सुरक्षित

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