शनिवार, 3 अक्तूबर 2015

वायदा करके तो आया कीजिये

आशिकों पे रहम खाया कीजिए
वायदा करके तो आया कीजिए

नब्ज थमने सी लगी है आज फिर

फिर जरा चेहरा नुमाया कीजिए

जब सनम पत्थर हुये तो किस लिए

बेवजह आँसू बहाया कीजिए

मुस्कुराहट आपकी बेसूद है

जब तलक उल्फ़त न शाया कीजिए

दिल में आने से अगर परहेज है

रात ख़ाबों में न आया कीजिए

दूरियाँ कुछ भी नहीं, दिल से अगर

याद कीजे, याद आया कीजिए

©2015 डॉ रविन्द्र सिंह मान

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