सोमवार, 2 नवंबर 2015

दिल किसी के लुट गया दीदार से

दिल, किसी के, लुट गया दीदार से
रो रहे हम आज तक लाचार से

जान अपनी थी कि उनकी, क्या खबर

ले गये पर वो तो अख्तियार से

भेजते हैं फिर दिलों की अर्जियाँ

देखिये, क्या पाएँगे सरकार से

प्यार, नेकी, दिलबरी औ दोस्ती

क्या खरीदे जाएँगे बाजार से?

चाँद उनकी दीद के ढलते नहीं

क्यों निगाहें फेरिये रुखसार से

मेहरें हम पे हुईं ऐसी की फिर

जिंदगी भर राह थे अंगार से

माधुरी उनके लबों की क्या कहूँ

गालियाँ भी लग रहे अशआर से

नाम लेता हूँ खुदा का भी मगर

फुर्सतें पाता हूँ जब दिलदार से

उम्र भर ये रास्ते वीरान थे

आपके आने से हैं गुलजार से

©2015 डॉ रविन्द्र सिंह मान
 सर्वाधिकार सुरक्षित








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