उसने साथ निभा देने का वादा नहीं किया
हमने भी उल्फत का कोई इरादा नहीं किया
पलकों पर रक्खा था सारे आंसू खारिज़ थे
दिल की धड़कन था पैकर का लिबादा नहीं किया
जिस जिस से मिलवाया खासम-खास कहा उसको
शायद ये गलती थी उसको सादा नहीं किया
जो तरकीबें थीं कहने , सुनने, और चुप रहने की
सबको दूना बरता एक से आधा नहीं किया
ऐसा नहीं अब जां देने की नौबत आन पड़े
प्यार किया हमने पर इतना ज्यादा नहीं किया
आज की धुंध में बात वफ़ा की क्यों कीजे, और किससे
सूरज ने भी शाम से कल कोई वादा नहीं किया
©2024 डॉ रविंद्र सिंह मान
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