मंगलवार, 25 अगस्त 2020

बुद्ध होने से पहले

 

सड़क पर भीड़ थी

मैं रुका रहा

देखता रहा दौड़ते सबको

आगे निकलते, पीछे छोड़ते सबको


सब वहाँ पहुँचना चाहते थे

जहाँ से और आगे के रास्ते थे

रास्तों को लाँघते, समय को ठेलते

देखता रहा सबको, स्वंय को धकेलते


दौड़ को उत्सुक क़दमों को रोक थोड़ा

किंचित चेतन ने अवचेतन को झँझोड़ा

स्वयं ने स्वयं को रोका

मैं रुका रहा


देखता रहा भीड़ में

स्वयं को अकेले

कैसे दौड़ते होंगे बुद्ध

बुद्ध होने से पहले



©2020 डॉ रविन्द्र सिंह मान

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