सड़क पर भीड़ थी
मैं रुका रहा
देखता रहा दौड़ते सबको
आगे निकलते, पीछे छोड़ते सबको
सब वहाँ पहुँचना चाहते थे
जहाँ से और आगे के रास्ते थे
रास्तों को लाँघते, समय को ठेलते
देखता रहा सबको, स्वंय को धकेलते
दौड़ को उत्सुक क़दमों को रोक थोड़ा
किंचित चेतन ने अवचेतन को झँझोड़ा
स्वयं ने स्वयं को रोका
मैं रुका रहा
देखता रहा भीड़ में
स्वयं को अकेले
कैसे दौड़ते होंगे बुद्ध
बुद्ध होने से पहले
©2020 डॉ रविन्द्र सिंह मान
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें