ग़जल
मुहब्बत में भी उसने दिल्लगी की
जहर देकर दुआ दी जिंदगी की
सन्नाटों में जो अक्सर गूँजती है
सदा है ये हमारी ख़ामुशी की
गुजारें वक़्त कैसे साथ अपने
कि आदत हो गई हमको किसी की
नहीं भूले तुम्हारा नाम, यानी
अभी कुछ और शामें हैं खुशी की
किसी का नाम लूँ, तू याद आये
हदें तो कर मुकर्रर बंदगी की
दगा देकर, ज़माने में सभी को
दुहाई दे रहा है दोस्ती की
©2019 डॉ रविन्द्र सिंह मान
सर्वाधिकार सुरक्षित
मुहब्बत में भी उसने दिल्लगी की
जहर देकर दुआ दी जिंदगी की
सन्नाटों में जो अक्सर गूँजती है
सदा है ये हमारी ख़ामुशी की
गुजारें वक़्त कैसे साथ अपने
कि आदत हो गई हमको किसी की
नहीं भूले तुम्हारा नाम, यानी
अभी कुछ और शामें हैं खुशी की
किसी का नाम लूँ, तू याद आये
हदें तो कर मुकर्रर बंदगी की
दगा देकर, ज़माने में सभी को
दुहाई दे रहा है दोस्ती की
©2019 डॉ रविन्द्र सिंह मान
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