बुधवार, 26 दिसंबर 2018

हर कोई लगता है अब देखा हुआ



जो रहा खुद आप में सिमटा हुआ
वो जहां में आज तक किसका हुआ

जिससे पूछो बस यही शिक़वा उसे
दिल लगाने में बड़ा हर्जा हुआ

बस्तियाँ उजड़ी हैं जैसे गाँव की
दिल का भी अपने यही किस्सा हुआ

रात भर कुछ बेक़रारी सी रही
ख़ाब में था चाँद भी बिखरा हुआ

वो चला जायेगा इक़ दिन बेवज़ह,
डर यही था, आखिरत सच्चा हुआ

आपको देखा तो इत्मीनान है
हर कोई लगता है अब देखा हुआ

कुछ तो आती थी उसे जादूगरी
जो मिला उससे, वही उसका हुआ

सोचता हूँ अलविदा के वक़्त भी
इश्क़ का क्यूँ खामखां चर्चा हुआ

बागवाँ है या कोई सय्याद है
हर परिंदा है डरा-सहमा हुआ

अब यकीं आए किसी पर, किस तरह
वो मिरा हो कर नहीं मेरा हुआ


©2018 डॉ रविन्द्र सिंह मान


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