रुत बदली तो मैंने समझा बदलेंगे हालात मेरे
शायद वो आ जाएंगे, बन जाएंगे औकात मेरे
एक जरा सी बात पे रूठ के राहों से जाने वाले
तू क्या जाने तुझ-बिन कैसे गुजरे हैं दिन-रात मेरे
जीने की भरपूर तलब थी, जीना भी था उसके साथ
मुमकिन है वो जानता था, आँखों में लिखी हर बात मेरे
दोनों ने इकरार किया था, प्यार किया था दोनों ने
उसके हिस्से में गुल आये, आँसू की बरसात मेरे
एक जरा से दिल ने कैसे- कैसे ये तूफान सहे
चाहत, ख्वाहिश, तलब, बेचैनी और रिश्तों की घात मेरे
नाउम्मीदी में ये खुशफहमी भी हरदम साथ रही
मैं जब चाहूँगा रख देंगे वो हाथों में हात मेरे
नदी किनारे से पूछुंगा, क्या आये थे वापिस वो
जिनके पास रखे हैं सारी खुशियों के सौगात मेरे
नाकामी से कुछ सीखा, न किस्मत ने ही साथ दिया
खूब थपेड़े राह में खाये दिल ने यूँ अर्थात मेरे
©2018 डॉ रविन्द्र सिंह मान
सर्वाधिकार सुरक्षित
शायद वो आ जाएंगे, बन जाएंगे औकात मेरे
एक जरा सी बात पे रूठ के राहों से जाने वाले
तू क्या जाने तुझ-बिन कैसे गुजरे हैं दिन-रात मेरे
जीने की भरपूर तलब थी, जीना भी था उसके साथ
मुमकिन है वो जानता था, आँखों में लिखी हर बात मेरे
दोनों ने इकरार किया था, प्यार किया था दोनों ने
उसके हिस्से में गुल आये, आँसू की बरसात मेरे
एक जरा से दिल ने कैसे- कैसे ये तूफान सहे
चाहत, ख्वाहिश, तलब, बेचैनी और रिश्तों की घात मेरे
नाउम्मीदी में ये खुशफहमी भी हरदम साथ रही
मैं जब चाहूँगा रख देंगे वो हाथों में हात मेरे
नदी किनारे से पूछुंगा, क्या आये थे वापिस वो
जिनके पास रखे हैं सारी खुशियों के सौगात मेरे
नाकामी से कुछ सीखा, न किस्मत ने ही साथ दिया
खूब थपेड़े राह में खाये दिल ने यूँ अर्थात मेरे
©2018 डॉ रविन्द्र सिंह मान
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