बुधवार, 22 अगस्त 2018

इक दुनिया है जो सरल नहीं




इक ही उपवन के वृक्ष सभी, पर पात- पात में अवकल है
इक दुनिया है जो सरल नहीं, इक जीवन है जो मुश्किल है

मौसम की धूप ने चिहरों पर अवसादों का रंग पोता है
यां ऐसा ही थोड़ा- थोड़ा, कुछ सबके साथ में होता है
लेकिन आशाओं के रथ जब, हुँकार उठाते रह- रह कर
उजास पहाड़ों से बहकर पानी सा बहता कल- कल है

इक दुनिया है जो सरल नहीं, इक जीवन है जो मुश्किल है


अंतर्मन के दर्पण पर कुछ, बनता है, और ढह जाता है
लेकिन कैनवास मिटा कर भी कुछ मिटा हुआ रह जाता है
ये गेसू हैं, ये आँखें हैं, ये होटों की गोलाई है
ये आँसू है, अट्टाहस है, या मेरे मन की अटकल है

इक दुनिया है जो सरल नहीं, इक जीवन है जो मुश्किल है

हर राह चुनौती देती है, हर राह उमंगें भरती है
लेकिन आशा न जाने क्यूँ, हर बार मोड़ पर डरती है
जो चलता है, जो गिर- गिर कर उठने की कोशिश करता है
जो काल के भाल पे चढ़ता है, हर राह में उसकी मंजिल है

इक दुनिया है जो सरल नहीं, इक जीवन है जो मुश्किल है


रुकने वाले, हँफ़ने वाले, कितना सा रस्ता है बाकी
दिन ढलता है ढल जाने दे, हर रात के बाद सुबह आती
अँधेरों के अपनेपन को साँसों में कुछ घुल जाने दे
जलना- बुझना है क्षणिक मगर , अँधेरा शाश्वत- निश्चल है

इक दुनिया है जो सरल नहीं, इक जीवन है जो मुश्किल है



©2018 डॉ रविन्द्र सिंह मान

 सर्वाधिकार सुरक्षित

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