सोमवार, 18 दिसंबर 2017

याद आये जब बात जरूरी खत लिखना


याद आये जब बात जरूरी खत लिखना
जिस भी बात पे राजी हो सहमत लिखना

ओ मन मेरे मरना तो इक बार ही है
सच न कह पाओ तो गजलें मत लिखना

तारीफें वो शख़्स जो करते हैं मुँह पर
पीठ पे कोशिश करते हैं तोहमत लिखना

लड़ना, लड़ कर हार भी जाना, फिर लड़ना
हार-जीत को ठीक नहीं, किस्मत लिखना

मैं भी चेहरे बदल-बदल के देख चुका
तुम भी नफ़रत को सीखे उल्फत लिखना

हम दिन को भी रात कहेंगे उस खातिर
और भी क्या-क्या है उनकी हसरत लिखना

हर पैरे में लिखते हो मसरूफ़ हो तुम
हर अक्षर में सीखे हो गफ़लत लिखना

सूरज भी जिसके दर सिजदा करता है
हम भी चाहेंगे उसकी अज़मत लिखना

इक अर्से से आईने में मिलने वाला
शख़्स, नहीं सीखा ख़ुद से निस्बत लिखना

©2017 डॉ रविन्द्र सिंह मान
 सर्वाधिकार सुरक्षित

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