मुस्कुरा के रो लेना, रो के मुस्कुरा लेना
आ गया हमें तेरा जिंदगी मजा लेना
ग़म कहीं पे रख देना, डर कहीं पे खो देना
लम्हे सब खुशी के भी वक़्त से चुरा लेना
आ गया हमें भी अब इश्क को ख़ता कहना
खुद ही दिल लगा लेना, खुद सजा उठा लेना
पत्थरों की बस्ती में आरजू है फूलों की
चाहता हूँ आँधी में कुछ दिये जला लेना
कल सभी अकेले थे, आज भी अकेले हैं
गो दीवार में आता खिड़कियाँ बना लेना
भूलने से भी मुश्किल, याद करना भूला कल
नाम रेत पर लिखना, लिख के फिर मिटा लेना
©2017 डॉ रविन्द्र सिंह मान
सर्वाधिकार सुरक्षित
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