बुधवार, 9 सितंबर 2015

कैसे तरसे मुफ़लिस पाई पाई को


तुम क्या जानो गाँवों की अमराई को
छाछ, दही, मक्खन औ दूध-मलाई को

चैत महीने फसलों पे बरसी आफत

फिर सावन में सूखे खेत तराई को

संसद में कपड़े फटने बस बाकी थे

नंगे तो मजदूर बहुत रुसवाई को

दुनिया के गम देखे तो महसूस हुआ

यूँ ही रोये रातों की तन्हाई को

कुछ तो कहिये क्यूँ हमसे नाराज हुये

कितने दिन खींचेंगे और लड़ाई को

कैसे बोटी-बोटी नोचा संसद ने

कैसे तरसे मुफ़लिस पाई-पाई को

©2015 डॉ रविन्द्र सिंह मान
 सर्वाधिकार सुरक्षित

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