शुक्रवार, 21 अगस्त 2015

रंग भरने को पर आसमाँ चाहिये

बेवफा जिंदगी को वफ़ा चाहिये
आसरा चाहिये इक सदा चाहिये

भूलके रास्ता खो चुके हैं निशाँ

देश को फिर नया रहनुमा चाहिये

जिंदगी और भी आशिकी से परे

बेवजह चाहिये खुशनुमा चाहिये

बेसबब आज रोये सरे राह हम

आँसुओं का जरा हौंसला चाहिये

दिल सहम ही गया आपने जब कहा

सामने से हटो रास्ता चाहिये

राहतों के अभी कुछ ठिकाने नहीं

चाहतें बेशुमार इंतिहा चाहिये

वे पड़ोसी हुये अब सदा को मिरे

दोस्ती का नया सिलसिला चाहिये

बात दिल की कहूँ बेजुबां न रहूँ

रंग भरने को पर आसमाँ चाहिये

आस तुमसे रही, बात दिल की कही

ये खता हो गई तो सजा चाहिये


©2015 डॉ रविन्द्र सिंह मान
 सर्वाधिकार सुरक्षित

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