काश !
ऐ काश! मैं ऐसा कर पाती
पंख फैलाती उङ जाती
नील गगन की ऊँचाईयों में
हिम सागर की गहराईयों में
अपने मन के उल्लासों का
जग में कलरव कर पाती
तिनका तिनका घास उठाये
मधु का मन में आस लगाये
जगमग चुँधियाती आखों से
गर परिहास जो कर पाती
पँख फैलाती उङ जाती
काश ! मैं ऐसा कर पाती
गैरों से घबराती सी
अपनों से शर्माती सी
मेरे मधुतम गीतों से
नींद तुम्हारी छिन जाती
अपने पे इठलाती सी
सत्य को झुठलाती सी
दूर-सुदूर पवन से आगे
खुश्बू बन-बन उङ पाती
पँख फैलाती उङ जाती
काश ! मैं ऐसा कर पाती
अपने भी हो पराये भी
तजे हुये अपनाये भी
अनजाने प्रिय समक्ष तुम्हारे
प्रणय निवेदन कर पाती
अपनों में सपनों में तुम
सीने की तपनों में तुम
याद सदा ही करती हूँ
पर आँहें नहीं भर पाती
पँख फैलाती उङ जाती
काश ! मैं ऐसा कर पाती
अनदेखा अनजाना सा
है कोई पहचाना सा
होठों पे खामोशी लेकर
अब मैं चुप नहीं कर पाती
तब भी मैं पाँखों के बिन
उखङी हुई साँसों के बिन
दूर नजर तक उङती हूँ
पर राहें नहीं मुङ पाती
पँख फैलाती उङ जाती
काश ! मैं ऐसा कर पाती
पँख फैलाती उङ जाती
पास तुम्हारे आ जाती
दोनों के अरमानों का
भेद तुम्हें समझा पाती
काश ! मैं ऐसा कर पाती
©1995 डॉ रविन्द्र सिंह मान
सर्वाधिकार सुरक्षित
ऐ काश! मैं ऐसा कर पाती
पंख फैलाती उङ जाती
नील गगन की ऊँचाईयों में
हिम सागर की गहराईयों में
अपने मन के उल्लासों का
जग में कलरव कर पाती
तिनका तिनका घास उठाये
मधु का मन में आस लगाये
जगमग चुँधियाती आखों से
गर परिहास जो कर पाती
पँख फैलाती उङ जाती
काश ! मैं ऐसा कर पाती
गैरों से घबराती सी
अपनों से शर्माती सी
मेरे मधुतम गीतों से
नींद तुम्हारी छिन जाती
अपने पे इठलाती सी
सत्य को झुठलाती सी
दूर-सुदूर पवन से आगे
खुश्बू बन-बन उङ पाती
पँख फैलाती उङ जाती
काश ! मैं ऐसा कर पाती
अपने भी हो पराये भी
तजे हुये अपनाये भी
अनजाने प्रिय समक्ष तुम्हारे
प्रणय निवेदन कर पाती
अपनों में सपनों में तुम
सीने की तपनों में तुम
याद सदा ही करती हूँ
पर आँहें नहीं भर पाती
पँख फैलाती उङ जाती
काश ! मैं ऐसा कर पाती
अनदेखा अनजाना सा
है कोई पहचाना सा
होठों पे खामोशी लेकर
अब मैं चुप नहीं कर पाती
तब भी मैं पाँखों के बिन
उखङी हुई साँसों के बिन
दूर नजर तक उङती हूँ
पर राहें नहीं मुङ पाती
पँख फैलाती उङ जाती
काश ! मैं ऐसा कर पाती
पँख फैलाती उङ जाती
पास तुम्हारे आ जाती
दोनों के अरमानों का
भेद तुम्हें समझा पाती
काश ! मैं ऐसा कर पाती
©1995 डॉ रविन्द्र सिंह मान
सर्वाधिकार सुरक्षित
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